डांडिया नृत्य : नवरात्रि का पारंपरिक नृत्य और बिहार में डांडिया - Dandiya in Bihar.

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डांडिया नृत्य: भारतीय संस्कृति की झलक और बिहार में डांडिया नाइट्स की धूम :


भारत की पहचान उसकी संस्कृति और परंपराओं से होती है। यहाँ हर त्योहार अपने साथ अनोखी खुशियाँ और परंपराएँ लेकर आता है। इन्हीं में से एक है नवरात्रि, जो माँ दुर्गा की आराधना का पर्व है। नवरात्रि केवल धार्मिक महत्व ही नहीं रखता, बल्कि यह उत्सव संगीत, नृत्य और सामूहिक आनंद का भी प्रतीक है। इस पर्व का सबसे प्रसिद्ध और आकर्षक पहलू है डांडिया नृत्य, जो गुजरात और राजस्थान की धरती से निकलकर पूरे भारत और विदेशों में लोकप्रिय हो चुका है। आज बिहार जैसे राज्यों में भी डांडिया नाइट्स का आयोजन बड़े स्तर पर किया जाता है, जिससे इसकी लोकप्रियता का अंदाज़ा लगाया जा सकता।


डांडिया नृत्य का परिचय: Introduction of Dandiya.


डांडिया नृत्य में भारत के विभिन्न कार्यक्रमों में प्रस्तुत नृत्य के साथ मनोरंजन के विभिन्न रूप शामिल हैं। यह भारत के पश्चिमी राज्य गुजरात में नवरात्री में भी प्रस्तुत किया जाता है। यह नृत्य गुजरात की सांस्कृतिक पहचान भी है।


डांडिया नृत्य करते समय चारों दिशाओं में रंगबिरंगी डांडिया नृत्यागान और ताल पर एक दुसरे के साथ डांडिया नृत्य करते हैं। इस नृत्य में आरंभ में नाच, डांडिया ताल, डांडिया बजी, से लेकर समापन में डांडिया सफर करते हैं। इस डांडिया में नृत्य के विभिन्न चरण अंत में नृत्य में ताल के अनुसार डांडिया की डगडग करते हैं। यह नृत्य देश के विभिन्न प्रांतों में संक्रात, बसंत, पोंगल, जैसी परबों में अपने भिन्न रूपों के साथ मनाते हैं।


डांडिया का इतिहास : History Of Dandiya.


डांडिया नृत्य की उत्पत्ति गुजरात और राजस्थान से मानी जाती है। प्रारंभ में यह नृत्य केवल धार्मिक अनुष्ठानों और देवी दुर्गा की पूजा के समय किया जाता था। धीरे-धीरे इसकी लोकप्रियता बढ़ी और यह सामूहिक मेलजोल का साधन बन गया।

इतिहासकार मानते हैं कि डांडिया नृत्य में प्रयुक्त डंडियाँ देवी दुर्गा के अस्त्र-शस्त्रों का प्रतीक हैं। इस नृत्य के माध्यम से अच्छाई की बुराई पर विजय का संदेश दिया जाता है। वहीं दूसरी ओर इसका संबंध भगवान कृष्ण की रासलीला से भी जोड़ा जाता है, जहाँ वे गोपियों के साथ नृत्य करते थे। इस तरह डांडिया नृत्य धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक तीनों स्तरों पर अपनी खास जगह रखता है।


डांडिया नृत्य की धार्मिक महत्व क्या है :


भारत में हर परंपरा के पीछे एक अद्भुत कहानी और गहरी भावना छिपी होती है, और डांडिया नृत्य इसका एक बेहतरीन उदाहरण है। यह नृत्य माँ दुर्गा और महिषासुर की महाकवि की याद दिलाता है, जिसमें डांडियों की टकराहट अच्छाई और बुराई के बीच के संघर्ष का प्रतीक बन जाती है। अंत में, यह अच्छाई की विजय का संदेश देता है।

डांडिया केवल एक नृत्य नहीं है; यह माँ दुर्गा की शक्ति और साहस का उत्सव है। नवरात्रि के दौरान जब लोग इसे करते हैं, तो हर कदम में भक्ति और श्रद्धा झलकती है। समय के साथ, यह नृत्य भगवान कृष्ण की रासलीला से भी जुड़ गया, जिसमें प्रेम और आनंद की भावना को व्यक्त किया जाता है। हर व्यक्ति इस संगीत और ताल में खोकर खुशी बांटता है।

यह नृत्य समाज को एकजुट करने का एक शानदार माध्यम भी है। इसमें सभी लोग - बड़े, छोटे, पुरुष और महिलाएँ - मिलकर भाग लेते हैं। यही वजह है कि नवरात्रि में डांडिया का जश्न इतना खास बन जाता है। यह हमें यह याद दिलाता है कि भक्ति, प्रेम और एकता के बिना जीवन अधूरा है।


डांडिया की खास बातें क्या है : 


डांडिया की खासियत सच में कमाल की है। ये सिर्फ ताल और लय का नृत्य नहीं है, बल्कि इसमें हर चीज इतनी रंगीन और जीवंत है कि देखने वाले बस देखते ही रह जाएँ। महिलाओं की चनिया-चोली पर चमकते मिरर वर्क और पुरुषों का केडीयू, धोती और पगड़ी इसे और भी खूबसूरत बना देते हैं। ढोलक, हारमोनियम और लोकगीतों की धुन पर नाचते हुए हर कोई खुद को उस माहौल में खो देता है, और अब तो DJ और बॉलीवुड गानों की धुनें भी इसमें मज़ा दोगुना कर देती हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि डांडिया अकेले नहीं, बल्कि सब मिलकर खेलते हैं, जिससे एक तरह की दोस्ती, भाईचारा और मिलन की भावना पैदा होती है। और डंडियों का तालमेल! हर बीट पर डंडियों की टकराहट जैसे पूरी जगह में ऊर्जा और उत्साह बिखेर देती है। सच में, डांडिया सिर्फ नाच नहीं, बल्कि खुशी और उत्सव का असली मज़ा है।




बिहार में डांडिया का महत्व क्या है : In Bihar.


बिहार में डांडिया का अपना ही मज़ा है। यहाँ लोग इसे सिर्फ नृत्य नहीं, बल्कि एक पूरी तरह का उत्सव मानते हैं। नवरात्रि में गाँव-शहर हर तरफ रंग-बिरंगे कपड़े, चमकते मिरर वर्क वाली चनिया-चोली और पगड़ी पहनकर लोग डांडिया खेलने निकल पड़ते हैं। ढोलक, हारमोनियम और लोकगीतों की धुन पर नाचना इतना मज़ेदार होता है कि हर कोई खुद को भूलकर बस ताल में खो जाता है। अब तो DJ और बॉलीवुड गानों की धुनें भी इसमें मज़ा दोगुना कर देती हैं। सबसे खास बात यह है कि डांडिया अकेले नहीं खेला जाता, बल्कि पूरे समूह में नाचते हैं, जिससे गाँव और मोहल्ले के लोग और भी करीब आ जाते हैं और एकता और भाईचारे की भावना बढ़ती है। और डंडियों का तालमेल! हर बीट पर डंडियों की टकराहट से जैसे पूरे माहौल में ऊर्जा फैल जाती है और लोग खुशी से झूम उठते हैं। सच कहूँ तो बिहार में डांडिया सिर्फ नाच नहीं, बल्कि भक्ति, खुशी और मिलन का असली जश्न है।

बिहार में डांडिया के दौरान खाने-पकवान, मिठाइयाँ और लोकल व्यंजन भी खास होते हैं। लोग एक-दूसरे को बुलाते हैं, साथ बैठकर खाते हैं और फिर नाचते हैं। इस तरह यह उत्सव सिर्फ नृत्य का नहीं, बल्कि खुशी, भक्ति और मिलन का प्रतीक बन जाता है।


डांडिया में शामिल होने से सिर्फ शरीर नहीं, बल्कि मन भी तरोताजा हो जाता है। लोग अपनी रोजमर्रा की चिंताओं को भूलकर बस ताल और धुन में खो जाते हैं। यह नृत्य लोगों को खुशी, शांति और ऊर्जा देता है। यही कारण है कि बिहार में डांडिया इतना लोकप्रिय है।


“डांडिया की तैयारी” कैसे करें :


डांडिया का असली मज़ा उसकी तैयारी में ही छुपा होता है। जैसे ही डांडिया खेलने का समय नज़दीक आता है, गाँव-शहर में हलचल शुरू हो जाती है और हर कोई अपनी-अपनी तैयारी में लग जाता है। सबसे पहले लोग अपने कपड़ों को लेकर व्यस्त हो जाते हैं.

लड़कियाँ रंग-बिरंगी चनिया-चोली चुनती हैं, जिस पर मिरर वर्क और कढ़ाई होती है, और लड़के धोती, केडीयू और पगड़ी तैयार करते हैं। छोटे बच्चे भी अपने छोटे-छोटे डंडियों और रंग-बिरंगे कपड़ों के साथ पूरी उत्सुकता के साथ शामिल हो जाते हैं। सिर्फ कपड़े ही नहीं, बल्कि डांडियों की तैयारी भी उतनी ही जरूरी होती है; लोग अपनी डंडियों की लंबाई, वजन और पकड़ की जाँच करते हैं और दोस्तों या परिवार के साथ प्रैक्टिस करते हैं ताकि हर बीट पर डंडियों का तालमेल सही रहे। 

महिलाएँ और पुरुष दोनों मिलकर ताल का अभ्यास करते हैं, ताकि नाचते समय कोई गलती न हो और हर बीट पर तालमेल बराबर बना रहे। संगीत की तैयारी भी पीछे नहीं रहती गाँव और मोहल्लों में लोग ढोलक, हारमोनियम और लोकगीतों की धुन सुनकर अभ्यास करते हैं और शहरों में अब DJ और बॉलीवुड गानों की धुनें भी शामिल हो गई हैं। लोग अपने स्टेप्स और ताल के अनुसार गानों का चुनाव करते हैं ताकि डांडिया खेलते समय हर कोई संगीत और ताल के साथ पूरी तरह जुड़ सके। 

जगह की तैयारी भी उतनी ही खास होती है; मैदान, चौक या हॉल जहाँ डांडिया खेला जाना है, वहाँ साफ-सफाई, रोशनी और सजावट की जाती है, रंग-बिरंगे झंडे, रोशनी और फूलों से माहौल खुशनुमा बनता है। बच्चे और युवा दोस्तों के साथ स्टेप्स की प्रैक्टिस करते हैं, डंडियों की ताल सीखते हैं और मज़ेदार तरीके से अपने कौशल को बढ़ाते हैं, वहीं बुज़ुर्ग सुझाव देते हैं कि ताल और तालमेल बनाए रखना और ऊर्जा बरकरार रखना कितना जरूरी है। इस पूरी तैयारी का असर नाच के दिन दिखाई देता है, जब हर कोई पूरी आत्मविश्वास और उत्साह के साथ डांडिया खेलने के लिए तैयार होता है और पूरे माहौल में खुशी और उमंग फैल जाती है।


Conclusion :


डांडिया नृत्य भारतीय संस्कृति का एक अद्भुत प्रतीक है। यह सिर्फ एक नृत्य नहीं बल्कि भक्ति, उत्साह और सामूहिकता का अनोखा संगम है। बिहार में इसकी बढ़ती लोकप्रियता यह साबित करती है कि भारतीय परंपराएँ और त्योहार केवल एक राज्य तक सीमित नहीं रहते, बल्कि पूरे देश को जोड़ने का काम करते हैं। आधुनिक समय में डांडिया नाइट्स न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव का रूप ले चुकी हैं, जो आने वाली पीढ़ियों को भारतीय संस्कृति से जोड़े रखने का कार्य करती हैं।


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