भारत में गर्मी एक ऐसा मौसम है जो न केवल वातावरण को तपाता है, बल्कि हमारे शरीर और मन पर भी गहरा प्रभाव डालता है। जैसे ही अप्रैल से जून के महीने आते हैं, तेज धूप, उमस, और लू चलने लगती है। इस मौसम में शरीर का तापमान भी वातावरण के अनुसार बदलने लगता है। यदि इस समय खानपान का सही ध्यान न रखा जाए, तो थकावट, चक्कर आना, डिहाइड्रेशन, एसिडिटी, लू लगना, पाचन समस्याएँ और यहाँ तक कि स्किन इन्फेक्शन भी हो सकता है।



आयुर्वेद के अनुसार, हर मौसम में “त्रिदोष” यानी वात, पित्त और कफ का संतुलन बिगड़ता है। गर्मियों में पित्त दोष अधिक सक्रिय हो जाता है, जिससे शरीर में गर्मी और जलन बढ़ जाती है। ऐसे में भोजन का सही चयन ही शरीर को संतुलित और स्वस्थ बनाए रख सकता है। यही कारण है कि आयुर्वेद गर्मियों में ठंडी तासीर वाले आहार, जल संतुलन, और हल्के पचने वाले भोजन को अपनाने की सलाह देता है।


गर्मी के मौसम में हमारे शरीर की आंतरिक गतिविधियाँ धीमी हो जाती हैं। पाचन अग्नि (Digestive Fire) कमजोर पड़ जाती है, और शरीर को ठंडा रखने के लिए पसीने के रूप में अधिक जल का ह्रास होता है। पसीना बहने से शरीर में आवश्यक लवण और इलेक्ट्रोलाइट्स की भी कमी हो जाती है, जिससे सिरदर्द, चक्कर और कमजोरी जैसी समस्याएँ होती हैं।

आयुर्वेद में इसे "ग्रीष्म ऋतुचर्या" कहा गया है। इसमें विशेष नियम बताए गए हैं :

  • दिन में ज्यादा नींद न लें
  • गर्म धूप से बचें
  • हल्का और शीतल भोजन करें
  • जल अधिक मात्रा में लें
  • ठंडे और स्वाभाविक पेय जैसे बेल का शरबत, सत्तू, छाछ आदि अपनाएं

अगर हम इन परंपरागत सिद्धांतों को आज की वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो स्पष्ट हो जाता है कि गर्मियों में शरीर को “कूल” रखना ही स्वास्थ्य का मूल मंत्र है।

एक पुरानी कहावत है – “जैसा खाओगे अन्न, वैसा होगा मन।” और यह बात गर्मियों में सबसे ज़्यादा सही बैठती है। हमारे खानपान की आदतें सीधा हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं। इस मौसम में तले-भुने, भारी और गर्म तासीर वाले पदार्थ शरीर में उष्णता और विषाक्तता बढ़ा सकते हैं। वहीं, ताजे फल, सब्जियाँ, छाछ, सत्तू आदि शरीर को ठंडा रखते हैं, और पाचन शक्ति को भी मज़बूत बनाते हैं।

अगर खानपान संतुलित न हो तो गर्मी में लू लगने की संभावना बढ़ जाती है, और त्वचा संबंधी बीमारियाँ जैसे फोड़े-फुंसी, सनबर्न, घमौरियाँ भी उत्पन्न हो सकती हैं। इसके अलावा, हाइड्रेशन की कमी से किडनी पर भी असर पड़ सकता है। इसीलिए आयुर्वेद सिखाता है कि खानपान के माध्यम से ही शरीर को ऋतुओं के अनुसार ढालना चाहिए।

गर्मी में क्या खाएं क्या नहीं ?

  • पानीदार फल और सब्ज़ियाँ: – गर्मी के मौसम में ऐसे फल और सब्जियाँ खानी चाहिए जिनमें पानी की मात्रा अधिक हो। जैसे – तरबूज, खीरा, खरबूज़ा, लौकी, तोरी, टमाटर और पालक। ये शरीर को ठंडक देते हैं, डिहाइड्रेशन से बचाते हैं और पाचन में भी मदद करते हैं।
  • नारियल पानी और छाछ: – नारियल पानी में नैचुरल इलेक्ट्रोलाइट्स होते हैं जो शरीर की गर्मी को संतुलित करते हैं। छाछ (मट्ठा) पेट को ठंडक देती है और पाचन को सुधारती है। यह गर्मी के मौसम का सबसे श्रेष्ठ पेय है।
  • सत्तू : बिहार और पूर्वी भारत में सत्तू को 'गर्मी का टॉनिक' कहा जाता है। यह पेट को ठंडा रखता है, प्यास बुझाता है और शरीर को ऊर्जावान बनाता है। रोज़ सुबह या दोपहर में सत्तू पीना लाभकारी होता है।
  • जौ (Barley) और चावल : गर्मी में गेहूं के बजाय जौ और चावल का सेवन अधिक लाभकारी होता है। ये शरीर में कम गर्मी उत्पन्न करते हैं और पाचन में हल्के होते हैं।
  • तुलसी और पुदीना : इनका सेवन या इनसे बनी चाय शरीर को शीतलता देती है। पुदीने का शर्बत या तुलसी-पानी गर्मियों में संजीवनी की तरह काम करता है।


गर्मी में क्या नहीं खाएं?

  • बहुत तला-भुना और मसालेदार खाना:  तले हुए पकौड़े, समोसे, मिर्ची वाले अचार और मसालेदार ग्रेवी शरीर में पित्त को और बढ़ाते हैं, जिससे एसिडिटी, पेट में जलन और लू लगने की संभावना बढ़ती है।

  • ज्यादा कैफीन और कोल्ड ड्रिंक : चाय, कॉफी और बाजार की ठंडी ड्रिंक्स शरीर को अस्थायी ठंडक तो देती हैं लेकिन अंदरूनी रूप से शरीर को और अधिक डीहाइड्रेट कर देती हैं।

  • मीट और भारी भोजन : अधिक मात्रा में नॉनवेज खाना, खासकर मटन, गर्मियों में पेट पर अतिरिक्त दबाव डालता है। आयुर्वेद में इसे पाचन के लिए भारी माना गया है।
  • खट्टी चीज़ें और गरम मसाले : सिरका, इमली, गरम मसाले जैसे लौंग, काली मिर्च और तेज़ पत्ते गर्मियों में अधिक सेवन करने से शरीर में उष्णता और पित्त दोष बढ़ता है।


आयुर्वेद के अनुसार हर ऋतु के अनुसार जीवनशैली में बदलाव करना जरूरी होता है, जिसे ऋतुचर्या कहा जाता है। गर्मी के मौसम में शरीर को ठंडा रखने और संतुलित बनाए रखने के लिए दिनचर्या में कुछ खास बातें अपनाना आवश्यक होता है। सबसे पहले सुबह जल्दी उठना और ठंडे पानी से स्नान करना चाहिए, जिससे शरीर की गर्मी शांत होती है। इसके बाद हल्का व्यायाम, जैसे प्राणायाम, अनुलोम-विलोम या कुछ देर ध्यान करना बेहद लाभकारी होता है।


दिन में बहुत अधिक शारीरिक श्रम से बचना चाहिए क्योंकि इससे शरीर में गर्मी और थकावट दोनों बढ़ती हैं। दोपहर के समय बहुत तेज़ धूप में निकलने से बचना चाहिए। अगर निकलना पड़े तो सिर पर गमछा या टोपी अवश्य पहनें और पानी की बोतल साथ रखें। दिन के भोजन में भारी और तेलयुक्त भोजन से परहेज़ करें, और हल्का व सुपाच्य भोजन जैसे खिचड़ी, दाल-चावल, और सब्जियों का सेवन करें। शाम को ठंडी हवा में थोड़ी देर टहलना लाभकारी होता है, लेकिन देर रात तक जागने से बचना चाहिए क्योंकि इससे शरीर में वात-पित्त असंतुलन हो सकता है।

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