जब भी घर में नया बच्चा पैदा होता है, तो पूरा परिवार खुशी से झूम उठता है। बच्चा छोटा होता है, नाजुक होता है और उसकी देखभाल सबसे बड़ा काम होता है। इस समय अक्सर घर की दादी, नानी, चाची और मोहल्ले की बहनें सलाह देती हैं कि बच्चे को थोड़ा नमक दे दो, चुटकी भर तो कुछ नहीं बिगड़ेगा। लेकिन आज का जमाना थोड़ा अलग है, और अब हमें बच्चों की परवरिश पुराने समय की तुलना में ज्यादा समझदारी और वैज्ञानिक सोच के साथ करनी चाहिए।
साल भर से पहले बच्चों को नमक नहीं देना चाहिए, ये बात अब डॉक्टर भी कहते हैं और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं जैसे WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) भी। कारण भी पक्के हैं और समझने लायक हैं।
- सबसे पहला कारण है कि छोटे बच्चे की किडनी यानी गुर्दे
- दूसरा बड़ा कारण है कि नमक दिल और दिमाग पर भी असर करता है :
जब बच्चे को जरूरत से ज्यादा नमक दिया जाता है तो उसके शरीर में पानी का संतुलन बिगड़ सकता है, जिससे ब्लड प्रेशर बढ़ने लगता है। इतना छोटा बच्चा अगर हाई ब्लड प्रेशर का शिकार हो गया तो उसकी सोचने-समझने की क्षमता पर असर पड़ेगा, और मानसिक विकास रुक सकता है। गांव के लोग कहते हैं कि अगर खेत में ज्यादा खाद डाल दो तो फसल जल जाती है, वैसे ही अगर बच्चे को ज्यादा नमक दे दो तो शरीर के अंदर का संतुलन बिगड़ सकता है। इसलिए इन सब चीजों पर ज्यादा ध्यान देना चहिये .
- तीसरी और सबसे जरूरी बात यह है कि मां के दूध में पहले से ही उतना सोडियम होता है
जितना एक नवजात बच्चे को चाहिए होता है। ऊपर से दिया गया कोई भी नमक गैरज़रूरी और हानिकारक है। अगर बच्चा फॉर्मूला दूध पी रहा है कहने का मातलब बाहरी दूध , तो उसमें भी संतुलित मात्रा में सोडियम रहता है। इसका मतलब है कि हमें साल भर तक बच्चे को ऊपर से नमक देने की कोई जरूरत ही नहीं होती। ये बात सच है.
- अब कई लोग यह भी सोचते हैं कि अगर हमने नमक नहीं दिया तो बच्चे को स्वाद कैसे आएगा?
असल बात यह है कि स्वाद धीरे-धीरे विकसित होता है। अगर शुरुआत से ही उसे ज्यादा नमक या मीठा दिया जाएगा, तो उसकी जीभ को वही स्वाद पसंद आने लगेगा और आगे चलकर वह सादा या पौष्टिक खाना खाने से मना करेगा। इससे उसकी सेहत पर लंबा असर पड़ेगा। इसलिए जरूरी है कि उसे बिना नमक वाला खाना दिया जाए ताकि उसकी जीभ का स्वाद सादा खाने के प्रति बना रहे। और किसी प्रकार की कोई समस्या न हो .
- अब हम आपको बताएंगे कि कौन-कौन से खाने में छिपा हुआ नमक होता है, जिससे हम अनजाने में बच्चे को नमक खिला देते हैं:
तो चलिए बताते हैं - बाजार में मिलने वाले बेबी फूड, दलिया मिक्स, बिस्कुट और रेडीमेड खिचड़ी में पहले से ही सोडियम की मात्रा रहती है। अगर आपने वो बिना देखे ही खिला दिया, तो भी नुकसान हो सकता है। इसलिए हमेशा जांच कर खाना दें, और कोशिश करें कि 6 से 12 महीने तक बच्चे को घर पर बना ताजा और बिना नमक वाला भोजन ही दें।
बच्चे को 6 महीने तक केवल मां का दूध देना चाहिए। इसके बाद धीरे-धीरे सादी खिचड़ी, बिना नमक वाली दाल का पानी, उबले आलू, केला, सेब इत्यादि दिया जा सकता है। उसमें भी कोई मसाला या नमक नहीं डालना चाहिए। कुछ लोग सूजी का हलवा बनाकर खिलाते हैं, उसमें भी सिर्फ थोड़ा घी और गुड़ डाला जा सकता है, नमक बिल्कुल नहीं।
- अब सवाल ये आता है कि एक साल बाद नमक देना शुरू करें तो कैसे करें?
इसका जवाब ये है कि जब बच्चा 12 महीने का हो जाए, तब शुरुआत में केवल चुटकी भर नमक से शुरुआत करें। जैसे पतली खिचड़ी में हल्का नमक मिलाकर दें। धीरे-धीरे स्वाद के अनुसार बढ़ाया जा सकता है, लेकिन एक साल के अंदर बिल्कुल नहीं देना चाहिए।
- क्या होता है ?अगर गलती से दे दिया नमक :
अगर गलती से बच्चे को नमक खिला दिया गया हो, तो तुरंत घबराने की जरूरत नहीं है। बच्चे को खूब दूध और पानी पिलाएं, पेशाब पर ध्यान दें, और अगर उल्टी, दस्त, या चिड़चिड़ापन दिखे तो डॉक्टर को दिखाएं।
हमारे गांवों में अक्सर ये कहा जाता है कि “हमारे समय तो बच्चे सब खा लेते थे, कुछ नहीं होता था”, लेकिन सच्चाई ये है कि पहले का खाना शुद्ध होता था, हवा साफ होती थी, और आज के मुकाबले बीमारियाँ भी कम थीं। आजकल का माहौल, बाजारू चीजें और प्रदूषित वातावरण में हमें ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है।
इसलिए अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा स्वस्थ, मजबूत और समझदार बने, तो उसे पहला साल बिना नमक के ही खिलाएं। दादी, नानी या मोहल्ले की चाची के कहने पर कोई भी चीज बिना जांचे परखे मत दीजिए। विज्ञान के साथ-साथ देसी समझदारी अपनाइए। यही असली परवरिश है। नहीं तो पछताने के सिवाय कुछ नहीं मिलता .
- आखिर-कार आयुर्वेदिक नजरिए से नमक (लवण) का असर – छोटे बच्चों पर क्यों हानिकारक है आइये जानते हैं ?
आपलोग यह बात अच्छे से जानते होंगें - आयुर्वेद में नमक को “लवण” कहा गया है और इसे छह रसों (स्वादों) में एक खास स्थान प्राप्त है : अर्थात् मधुर (मीठा), अम्ल (खट्टा), लवण (नमकीन), कटु (तीखा), तिक्त (कड़वा) और कषाय (कसैला)। लवण रस का प्रभाव शरीर में अग्नि (पाचन शक्ति) को बढ़ाने वाला होता है, साथ ही यह वात दोष को शांत करता है और कफ को बढ़ाता है। शायद यह जानकारी आप के किये !
अब बच्चे के शरीर की जब हम बात करें, तो आयुर्वेद कहता है कि शिशु का शरीर “कफप्रधान” होता है – यानी उसमें स्वाभाविक रूप से कफ अधिक होता है, जिससे शरीर को चिकनाई, नमी और बढ़ने की शक्ति मिलती है। अगर इस समय हम नमक यानी लवण रस दे देते हैं, तो वह कफ को और बढ़ा देता है, जिससे शिशु में बलगम, जुकाम, नजला, छाती जकड़ना, दस्त जैसी समस्याएं जल्दी होने लगती हैं। और हम काफी ज्यादा परेशान होने लगते हैं.
- दूसरी बात : लवण रस शरीर के जल तत्व (body fluids) को सोखने की क्षमता रखता है
आयुर्वेद में इसे “शोषक” गुण कहा गया है : यानी यह शरीर से तरलता को खींचता है। छोटे बच्चों का शरीर पहले ही नाजुक होता है और उनमें जल तत्व का अनुपात अधिक होता है। अगर आप नमक देंगे तो वह शरीर से जल तत्व सोख कर शरीर को अंदर से सुखाने लगेगा। इसका असर सीधे त्वचा (skin), आँखें और मल-मूत्र की प्रक्रिया पर पड़ेगा।
"आयुर्वेद में कहा गया है: "बालानां शरीरं कोमलम् स्नेहात्मकं च"
कहने का अर्थ है - बच्चों का शरीर कोमल होता है, और उसमें प्राकृतिक स्निग्धता (चिकनाई) होती है। लवण उस स्निग्धता को नष्ट कर देता है, जिससे त्वचा रूखी, आंखें लाल, और मल त्याग कठिन हो जाता है।
- तीसरी बात - आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से :
नमक का अधिक प्रयोग “पित्त” को प्रज्वलित करता है। यानी शरीर में गर्मी बढ़ाता है। छोटे बच्चों में अगर पित्त बढ़ गया, तो वे चिड़चिड़े, गर्म मिजाज, रात को सोने में परेशानी, और शरीर में जलन जैसे लक्षण दिखा सकते हैं। यही वजह है कि पुराने वैद्य हमेशा कहते थे “लवणम शिशौ वर्ज्यम्” यानी नमक शिशु को वर्जित कहने का अर्थ सक्त मना है।
- अब सवाल ये उठता है कि अगर नमक नहीं दें, तो क्या नुकसान नहीं होगा ?
आपका का उत्तर होगा - नहीं, क्योंकि आयुर्वेद मानता है कि मातृ स्तन्य (मां का दूध) ही ऐसा संपूर्ण आहार है, जिसमें पंचमहाभूतों यानि (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) का सन्तुलन होता है, और इसमें स्वाभाविक रूप से शरीर की आवश्यकता के अनुसार लवण का अंश होता है। यह बात पूर्ण रूप से सच है .
- आखिर नमक दे कब ? जबाब :
जब बच्चा 1 वर्ष से बड़ा हो जाए और उसके धातु (टिशूज) थोड़े विकसित हो जाएं, तो तभी जाकर धीरे-धीरे लवण रस की अल्प मात्रा देना चाहिए 'कहने का मतलब तोड़े तोड़े मात्रा' और वह भी सादा सेंधा नमक या सागर लवण के रूप में। आयुर्वेद “सैंधव लवण” ' अपनालोग के भाषा में सेंधा नमक को सबसे कोमल और पाचन के लिए लाभकारी मानता है, जबकि साधारण सफेद नमक (नमक पाउडर) को तीव्र और पित्तवर्धक बताया गया है।
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